Madhu varma

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लेखनी कहानी - नरमुंड वाली चुड़ैल

नरमुंड वाली चुड़ैल

राजकोट में एक ATM सर्विस कंपनी में काम करने वाले जितेन्द्र परमार एक मध्यम वर्ग के प्रामाणिक इन्सान हैं। उनकी शादी को करीब 4 साल हो चुके हैं। उन्हे एक बेटा भी है। वैसे तो जितेन्द्र पाठ पूजा में कम ही मानते हैं, पर रास्ते में मंदिर या मस्जिद आ जाए तो सिर झुका भी लेते हैं।

जितेन्द्र की नौकरी का समय तो दिन में 8.5 घंटे होता है, पर ATM मशीन का fault आने पर उन्हे रात के किसी भी वक्त सर्विस देने जाना पड़ता है। अपने इसी काम के चलते वह एक रात अपनी बाइक पर जा रहे थे। उन्हे शहर से थोड़ी दूर बसे एक रिहाइशि इलाके के पास में ATM फाल्ट ठीक करने जाना था।

वैसे तो इस काम के लिए दो Executive जाते हैं पर जितेन्द्र का पार्टनर उस रात बीमार था तो Servicing के लिए उन्हे अकेले ही जाना पड़ा।

स्पॉट पर जा कर जितेन्द्र नें अपनी बाइक स्टैंड पर लगाई। तभी उन्हे वहाँ ATM Booth पर एक लड़की दिखी। जितेन्द्र नें सोचा की उसे शायद पैसे निकालने होंगे और वह के ठीक होने का wait कर रही होगी।

Fault ठीक कर ने के लिए जैसे ही जितेन्द्र एटीएम बूथ के अंदर आए तो वह लड़की भी अंदर आने लगी। Security guard नें उन्हे बहार रुकने के लिए कहा।

अब जितनेद्र अपना काम कर रहे थे। तभी अचानक उसकी नज़र ATM बूथ के बहार गयी, वहाँ उन्होने जो देखा उसे देख कर उसके पसीने छूट गए।

बाहर खड़ी लड़की ATM Guard की मुंडी अपने हाथ में लिए खड़ी थी। और वह जितेन्द्र की और घूर कर देख रही थी। यह सब देख कर जितेन्द्र का दिल बेतहाशा तेज़ी से धड़कने लगा। उन्होंने वहां से नज़र हटा ली और सोचा कि ये उनका भ्रम होगा।

वो ये सब सोच ही रहे थे कि तभी अचानक उनके सीनियर का फोन बज उठा। यह फोन वहाँ का fault जल्दी ठीक करने के लिए था। काँपते-काँपते जितेन्द्र फिर से काम पर लग गए। थोड़ी ही देर में उन्होने ATM मशीन ठीक कर लिया। इस बार ATM बूथ से बहार देखने पर सब नॉर्मल लग रहा था। वह लड़की भी वहाँ खड़ी थी और एटीएम बूथ का गार्ड भी उसके पास आराम से खड़ा था।

जितेन्द्र नें सोचा की पहले जो भी देखा था, वह सब उसका भ्रम होगा। वह काम निपटा कर सीधा अपनी बाइक की और दौड़ गया। जाने से पहले उसने एक बार फिर ATM booth पर नज़र डाली तब एक बार फिर से उसका दिल दहल गया। एक बार फिर बाहर खड़ी लड़की ATM Guard की मुंडी अपने हाथ में लिए खड़ी थी।

इस भयानक नज़ारे को देख कर जितेन्द्र बुरी तरह डर गए, और जल्दी से वहाँ से भाग निकले।

राजकोट वापस लौटते वक्त भी उन्हे बार-बार यह भास हो रहा था की उनकी बाइक के साथ कोई परछाई चल रही है। वे घबराये हुए बीके चलाये जा रहे थे कि ना जाने कैसे अचानक ही उनकी बीके बंद हो गयी….और ठीक एक बरगद के पेड़ के पास जाकर रुकी….जितेन्द्र जी को यकीन नहीं हो रहा था कि उनके साथ ये सब सचमुच हो रहा है….

उन्होंने नज़र उठाई तो बरगद की शाखा से झूलती एक आकृति नज़र आई…उसके हाथ में एक नरमुंड था और वो अजीब घरघराहट भरी आवाज़ में कुछ बोल रही थी…

जित्नेद्र जी ये सब देखकर वहीँ जड़ हो गए…न उनकी चीख निकली न उनके अन्दर हिलने की ताकत बची….चुड़ैल पेड़ से उतरी…उसके उलटे पाँव देखकर जित्नेद्र जी के पसीने छूट गए…उन्होंने आँखें मूँद ली और भगवान् को याद करने लगे….चुड़ैल उनके बगल में आकर बैठ गयी और उनका सर सहलाने लगी….इसके बाद जितेन्द्र जी को कुछ याद नहीं कि उनके साथ क्या हुआ…जब होश आया तो वे एक hospital में थे।

सुबह कुछ स्थानीय लोगों ने उन्हें बेहोश पड़ा देखकर हॉस्पिटल पहुंचा दिया था। इस घटना के महीनो बाद तक जितेन्द्र बेसुध रहे और काफी पूजा-पाठ के बाद ही उनकी हालत फिर से सामन्य हो पायी। अब वे राजकोट छोड़ चुके हैं और एक सामन्य जीवन जी रहे हैं।

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